यलो ट्रैप (Yellow Trap) यानी पीली चिपचिपी पट्टियाँ जहर रहित कीट नियंत्रण की एक विधि है और कीटनाशियों का बेहतर विकल्प भी हैं. इस विधि में कीट रंग से आकर्षित हो कर पट्टी पर लगी गोंद से चिपक कर मर जाता है. फसलों में बिना कीटनाशी के कीट नियंत्रण की यह उत्तम विधि है, इसलिए प्रकृति अनुकूल खेती का हिस्सा है.
यलो ट्रैप कैसे काम करता है
प्रकृति में एक साथ चटख रंग सिर्फ फूल आने पर ही दिखाई देते हैं. यानी दिन में एक्टिव रहने वाले कीटों के लिए भोजन का संकेत हैं. खास तौर पर फूलों कि अवस्था पर हमला करने वाले कीटों के लिए. आपको यह तो पता ही होगा कि फूल आना शुरू होने पर पौधों में भोजन निर्माण की प्रक्रिया तेज हो जाती है. कीट इसी का फायदा उठाने के लिए फूलों वाले पौधों कि ओर विशेष आकर्षित होते हैं. यलो ट्रैप (Yellow Trap) उन्ही चटख रंगों में से एक रंग यानी पीले रंग का इस्तेमाल करके बनाया जाता है.
यलो ट्रैप दो प्रमुख रूपों में उपलब्ध है. एक पहले से गोंद लगा कर तैयार रूप, दूसरे रूप में किसान को पट्टियाँ और गोंद अलग अलग मिलती हैं. पीली पट्टियों पर गोंद लगा कर किसान खुद ही यलो ट्रैप तैयार करते हैं.
सहूलियत की दृष्टि से पहले से गोंद लगा कर तैयार रूप ज्यादा अच्छा है.
जहर रहित कीट नियंत्रण में यलो ट्रैप का स्थान
यलो ट्रैप कुछ कीटभक्षी पौधों से प्रेरित हो कर बनाये गए हैं. ये पौधे विशेष ग्रंथियों से ओस की बूंद की तरह चिपचिपे गोंद का निर्माण करते हैं और शिकार कीट को चिपका लेते हैं.
यलो ट्रैप में किसी प्रकार के कीटनाशी रसायन का प्रयोग नहीं किया जाता. इसके निर्माण में सिंथेटिक गोंद का प्रयोग किया जाता है, जो धूप, पानी आदि सहने की क्षमता रखती है और लम्बे समय तक चलती है.
यलो ट्रैप किन कीटों के लिए प्रभावी है?
यलो ट्रैप प्रमुख रूप से रस चूसक कीटों से सुरक्षा प्रदान करते हैं बशर्ते सही समय पर लगाये जाएँ. आज कल अंधाधुंध कीट नाशियों के प्रयोग से रस चूसक कीटों का प्रकोप बढ़ गया है क्योंकि इन्हें कॉम्पिटिशन और परजीविता के माध्यम से नियंत्रित करने वाले कीट कीटनाशियों के अनियंत्रित प्रयोग के कारण नष्ट हो गए. रस चूसक कीट जल्दी ही कीट नाशकों के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं दूसरी ओर इन्हें नियंत्रित करने वाले कीट नाशी ण सिर्फ महंगे हैं बल्कि उनका रिजल्ट भी संतुष्टिदायक नहीं होता.
इस परिस्थिति में यलो ट्रैप का प्रयोग कीटनाशियों से भी बेहतर परिणाम देता है और कीट नाशियों से बचाव के कारण पर्यावरण के अनुकूल भी है.
यलो ट्रैप प्रमुख रूप से सफ़ेद मक्खी यानी व्हाइट फ्लाई (White Fly), थ्रिप्स (Thrips), फुदकने वाले हरे मच्छर यानी लीफ़ हॉपर (Leaf Hopper), माहू यानी एफिड (Aphids), पत्ती पर सांप नुमा धारियां बनाने वाला कीट यानी लीफ़ माइनर (Leaf Minor), भूरे स्टिंग बग (Sting Bug), तने को निशाना बनाने वाली स्टेम फ्लाई (Stem Fly), फल मक्खी (Fruit fly), डायमंड ब्लैक मोथ (Diamond Black Moth), फंगस नैट (Fungus gnats) और अन्य कई प्रकार के नाशी जीव जो पीले रंग (सुगंध की ओर नहीं) की ओर आकर्षित होते हैं, यलो ट्रैप में चिपकते हैं.
नीचे के चित्रों में आप यलो ट्रैप में चिपके हुए अलग अलग प्रकार के कीटों को देख सकते हैं. इन चित्रों से एक और बात समझी जा सकती है कि कीटों का प्रकोप फसल और मौसम के अनुसार बदलता रहता है.






यलो ट्रैप (Yellow Trap) कब लगाना चाहिए ?
यलो ट्रैप लगाने का निर्णय मौसम, खेत के आसपास लगी फसलों और फसल की अवस्था के अनुसार लिया जाना चाहिए. जैसे अगर पड़ोस के खेत में लगी फसल में पहले से ही रस चूसक कीट हैं तो पौधे उगने के बाद जल्द से जल्द यलो ट्रैप लगा देने चाहिए. अगर आसपास फसल नहीं है तो भी शुरुआती 30 दिनों के अन्दर यलो ट्रैप लगाना फायदे का निर्णय रहता है.
यलो ट्रैप गौशाला में भी उपयोगी है!

गौशाला में पशुओं को मक्खियाँ बहुत परेशान करती हैं. कई बार पशु इनके काटने के कारण ठीक से सो भी नहीं पाते, जिससे दूध की मात्रा प्रभावित होती है. दूश निकालते वक्त भी ये मक्खियाँ पशुओं को परेशान करती हैं. सामान्यतः इन्हें मारने के लिए जहरीले कीट नाशियों का छिडकाव गौशाला में किया जाता है.
bacter किसानों ने पाया कि पशुओं को काटने वाली मक्खियाँ भी यलो ट्रैप से आकर्षित इससे चिपक जाती हैं. मक्खियों कि संख्या में कमी आने पर पशु अच्छी नींद सोते हैं और दूध का उत्पादन बढ़ जाता है.
यलो ट्रैप (Yellow Trap) का चुनाव करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
यलो ट्रैप के लिए सबसे जरुरी चीज है उसकी गोंद. अगर यह गोंद कम समय चलती है, पानी और स्प्रे से ख़राब होती है तो वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे. बड़े आकार के ट्रैप का कवरेज ज्यादा होता है. ट्रैप जिस मटेरियल से बना है उसका रंग धूप से हल्का न पड़े यह भी जरुरी है.
लेखक परिचय:

डॉ. पुष्पेन्द्र अवधिया (Ph.D. लाइफ साइंस, M.Sc. इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी)
विषय रूचि– सूक्ष्मजीव विज्ञान, कोशिका विज्ञान, जैव रसायन और प्रकृति अनुकूल टिकाऊ कृषि विधियां
कृषि में उन्नति के लिए सही विधियों की जानकारी उतनी ही जरुरी है जितना उन विधियों के पीछे के विज्ञान को समझने की है. ज्ञान-विज्ञान आधारित कृषि ही पर्यावरण में हो रहे बदलावों को सह पाने में सक्षम होती है और कम से कम खर्च में उच्च गुणवत्ता कि अधिकतम उत्पादकता दे सकती है. खेत का पर्यावरण सुधरेगा तो खेती लंबे समय तक चल पायेगी. आइये सब की भलाई के लिए विज्ञान और प्रकृति अनुकूलता की राह पर चलें.
किसान भाई कृषि सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु Whatsapp-7987051207 पर विवरण साझा कर सकते हैं.
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