पोटाश (Potash); फसलों की उच्च पैदावार का रहस्य
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश पौधों कि जैविक क्रियाओं के लिए सबसे जरुरी मूल तत्व हैं. पोटाश (potash/potassium) पौधों में जल के अवशोषण, पानी की मात्रा के नियमन, स्टोमेटा के खुलने बंद होने के रेगुलेशन और पौधे में बने भोजन (शर्करा) के पौधे के सम्पूर्ण भागों में वितरण के लिए अति आवश्यक तत्व है.
भूमि में पोटाश (potash)
भूमि में पोटाश (Potash) सामान्यतः पौधों की जरूरत से कहीं ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। कई जगहों पर यह मात्रा 20 ग्राम प्रति किलोग्राम मिट्टी से भी ज्यादा होती है। अत्यधिक मात्रा में होने के बावजूद भी मिट्टी में उपस्थित पोटाश पौधों के लिए उपलब्ध रूप में नहीं होता। पोटाश जमीन यानी खनिज पत्थरों का स्ट्रक्चरल कंपोनेंट है, अर्थात मिट्टी के संरचनात्मक घटक होने के कारण यह मिट्टी में कांपलेक्स रूप में होता है परंतु पौधे के लिए उपलब्ध नहीं होता।
मिट्टी में पोटाश का स्त्रोत खनिज चट्टानें हैं
मिट्टी का पोटाश (Potash) पौधे के काम आएगा या नहीं यह इस तथ्य पर निर्भर है की चट्टान से मिट्टी का निर्माण कौन सी अवस्था पर है। पहाड़ी इलाकों की मिट्टी अगर पुरानी हो चुकी है तो यह संभावना अधिक है कि चट्टान में उपस्थित पोटाश अब पौधे के लिए उपलब्ध रूप में आ चुका होगा, बशर्ते पानी द्वारा उसका नियमित क्षरण ना होता रहे। मिट्टी की गहराई और मिनरल्स की उपलब्धता पोटाश की मात्रा को निर्धारित करती है।
माइका, पोटाश के खनिज रूपों में से एक है। इसमें 4% तक पोटाश हो सकता है।
मिट्टी में पोटाश के रूप:
पोटाश (Potash) की उपलब्धता के अनुसार इसे मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
1 – अनुपलब्ध पोटाश
2 – धीमी गति से उपलब्ध पोटाश और
3- सामान्यता उपलब्ध पोटाश यानी एक्चेंजेबल पोटाश
प्राकृतिक रूप से पोटाश के यह तीनों रूप आपस में परिवर्तनशील या interchangeable होते हैं।
मिट्टी में उपलब्ध पोटाश का 90 से 95 परसेंट हिस्सा मिनरल रूप में ही पाया जाता है यानी अनुपलब्ध रूप में। माइका और फेल्सपार पोटाश के प्रमुख मिनिरल हैं इस रूप में उपस्थित पोटाश को पौधे प्रयोग नहीं कर पाते।
पोटाश (Potash) खनिज कालांतर में धूप, पानी और हवा के प्रभाव से आसान रूप में परिवर्तित हो जाते हैं और पोटैशियम पौधे के लिए उपलब्ध रूप में परिवर्तित हो जाता है, परंतु इस कार्य की गति अत्यंत धीमी होती है. फसल के लिए आवश्यक पोटाश की मात्रा की पूर्ति करने के लिए यह स्पीड निष्प्रभावी होती है।
धीमी गति से उपलब्ध पोटाश कई रूपों में पाया जाता है। मिट्टी की परतों के बीच में बंधित हुआ पोटाश इस कैटेगरी में आता है। इसका एक हिस्सा पौधे के लिए आसानी से उपलब्ध पोटाश के रूप में भी हो सकता है। पोटाश के यह रूप कितने अनुपात में उपस्थित हैं यह मिट्टी की संरचना और प्रकार पर निर्भर करता है।
क्ले प्रकार की मिट्टी में पोटेशियम को रोकने की क्षमता होती है और यह धीरे धीरे पौधे को मिलता है। सूखने पर क्ले पोटेशियम को सोख लेती है और पानी मिलने पर के पुनः पौधे को प्राप्त हो जाता है. क्ले मिट्टी के भिन्न-भिन्न प्रकार भिन्न-भिन्न गति से पोटेशियम रिलीज करते हैं। कुछ प्रकार की क्ले तो पोटैशियम फर्टिलाइजर डालने पर पोटेशियम को रोक लेती है और पौधे को पर्याप्त मात्रा में पोटैशियम उपलब्ध नहीं होने देती।

अब आते हैं पोटेशियम के सबसे ज्यादा उपलब्ध रूप यानी पानी में घुलित रूप या विलयन रूप पर. पानी में घुला हुआ पोटैशियम अपने आयनिक रूप में उपलब्ध होता है। इस पोटेशियम आयन को पौधे आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। मिट्टी के कणों के बाहरी सतह पर भी पोटैशियम अपने आयन रूप में उपलब्ध होता है और उसे भी पौधे आसानी से ग्रहण कर सकते हैं। पोटेशियम के इस रूप को एक्चेंजेबल पोटैशियम कहा जाता है।
इस पूरी वार्ता को संक्षिप्त रूप में लिखें तो;
मिनिरल्स के रूप में उपस्थित धीमी गति से उपलब्ध पोटाश 🔄 मृदा कणों विनिमय योग्य पोटाश🔄 आसानी से उपलब्ध पोटाश (आयन रूप में)
पौधों द्वारा अवशोषित पोटाश पौधे की मृत्यु उपरांत सूक्ष्म जैविक विघटन की प्रक्रिया से गुजर कर पुनः अन्य जीवों के लिए उपलब्ध हो जाता है।
पौधे द्वारा पोटाश का अवशोषण
जमीन से पोटाश की उपलब्धता प्रमुख रूप से नमी और तापमान पर आश्रित होती है। भूमि से पौधों द्वारा पोटेशियम का अवशोषण को कुछ अन्य फैक्टर्स भी प्रभावित करते हैं-
- भूमि की नमी
- भूमि में वायु प्रवाह और ऑक्सीजन की मात्रा
- भूमि का तापमान
- जुताई
पानी की अच्छी उपलब्धता पोटेशियम की मोबिलिटी बढ़ा देती है। अच्छी नमी यानी ज्यादा उपलब्ध पोटैशियम। इसी से जुड़ा हुआ फैक्टर है जमीन में हवा का प्रवाह और ऑक्सीजन की मात्रा। जड़ों को पोटैशियम के अवशोषण के लिए ऑक्सीजन की जरुरत होती है.
हवा में घुलित ऑक्सीजन पौधे की जड़ों द्वारा सांस लेने के लिए प्रयोग की जाती है और यह प्रक्रिया पोटेशियम के अवशोषण के लिए जरूरी है। पर सोचने की बात यह है कि जमीन में जब अधिक मात्रा में पानी उपलब्ध होगा तो हवा की मात्रा कम हो जाएगी। पोटेशियम की उपलब्धता और अवशोषण के लिए भूमि में नमी और हवा के बीच बैलेंस बना रहना आवश्यक है।
जमीन को एक साथ हवादार और नमीं युक्त बनाये रखना एक बड़ा चैलेंज है. इस कार्य के लिए कम्पोस्ट का प्रयोग सबसे ज्यादा प्रभावी और लाभकारी हो सकता है. कम्पोस्ट जमीन कि जलधारण क्षमता बढ़ाता है और साथ ही इसे पोरस यानी छिद्र युक्त या भुरभुरी बना कर वायु का प्रवाह भी सुगम करता है.
अब अगर तापमान की बात करें तो ऐसा तापमान जो पौधे की वृद्धि और विकास के लिए जरूरी है उस तापमान पर पोटेशियम का अवशोषण सबसे उपयुक्त गति से होता है। 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पोटेशियम के अवशोषण के लिए उपयुक्त माना जा सकता है। पोटैशियम का अवशोषण निम्न तापमान पर कम होता है। जिन कृषि भूमियों में नियमित कम्पोस्ट का प्रयोग किया जता है उनका तापमान आसानी से कम ज्यादा नहीं होता अर्थात अच्छे आर्गेनिक मैटर वाली मिट्टी तापमान परिवर्तन के प्रति काफी हद तक प्रतिरोधी होती हैं.
जुताई का प्रभाव पोटेशियम की उपलब्धता पर काफी प्रॉमिनेंट होता है। बिना जुताई और सिर्फ बोई जाने वाली जगह पर जुताई वाली विधि में पौधों में पोटेशियम की कमी देखी जाती है। ऐसी विधियों में जडें ठीक से विकसित नहीं हो पाती और मिट्टी में उनका फैलाव भी सीमित रहता है।
पोटेशियम की कमी के लक्षणों की अगर बात करें तो यह भिन्न भिन्न फसलों में अलग-अलग रूप में परिभाषित होता है। साथ ही फसल की उम्र पर इसकी कमी के लक्षणों को प्रभावित करती है इस लिए किसी एक लक्षण को पैरामीटर नहीं माना जा सकता।
पोटाश (potash) उर्वरक
पोटेशियम उर्वरकों की बात करें तो पोटाश उर्वरक और उनमें उपलब्ध पोटैशियम की प्रतिशत मात्रा को प्रदर्शित करती लिस्ट नीचे है;
- Potassium Nitrate पोटैशियम नाइट्रेट (13:0:45) – 45-46%
- Potassium chloride पोटैशियम क्लोराइड (0:0:60)- 60-62%
- Potassium Sulphate पोटैशियम सल्फेट (0:0:50)- 50%
- Potassium schoenite पोटैशियम स्चोनाइट (0:0:20)- 20%
खाद की बोरी में (जैसे यहां पर खाद के नाम के बगल में लिखा है) अनुपातिक विधि से जो अंक लिखे होते हैं, वे खाद में उपस्थित नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश की मात्रा को क्रमशः इंगित करते हैं। इसमें तीसरे स्थान पर जो अंक लिखा होता है, वह खाद में पोटैशियम की मात्रा दिखाता है।
उदाहरण के लिए 12:32:16 में 16% पोटाश होता है। विभिन्न खादों को इस अनुपातिक अंक विधि द्वारा भी पहचाना जाता है।
एक सामान्य तौर पर पूछे जाने वाला सवाल यह है कि सफेद और लाल पोटाश में क्या फर्क होता है?
सफेद, गुलाबी और लाल रंग के पोटाश यानी 0:0:60 की गुणवत्ता में एक दूसरे की तुलना में कोई खास फर्क नहीं होता। तीनों ही लगभग एक समान रूप से प्रभावी है। इनके रंग में जो अंतर है वह इनमें आयरन की अशुद्धि के कारण होता है ।
Potassium Sulphate का प्रयोग पोटेशियम की पूर्ति के लिए किए जाने पर सल्फर भी पौधे को उपलब्ध हो जाता है इसी प्रकार पोटैशियम शोनाइट का प्रयोग करने पर सल्फर के साथ-साथ मैग्नीशियम की भी पूर्ति फसल को होती है। Potassium नाइट्रेट नाइट्रोजन का भी अच्छा स्रोत है। Potassium nitrate और Potassium Sulphate पोटैशियम क्लोराइड की तुलना में काफी महंगे पड़ते हैं।
कम्पोस्ट (compost)और पोटाश:
गोबर की खाद और फसल अपशिष्ट में भी पोटैशियम पाया जाता है। कम्पोस्ट में पोटैशियम की मात्रा अपशिष्ट के प्रकार, उसकी उम्र और बारिश के पानी द्वारा हुई क्षति के आधार पर कम या ज्यादा हो सकता है। सिर्फ कम्पोस्ट द्वारा फसल को पोटाश की पूर्ति के लिए पोटैशियम और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा की जांच जरूर करनी चाहिए, ताकि बढ़िया उत्पादन के लिए सही मैनेजमेंट किया जा सके।
पोटाश और मित्र सूक्ष्मजीव (Beneficial Microbes):
आइए अब इस पर चर्चा करें की खनिज रूप और मिट्टी में कांपलेक्स रूप में उपस्थित पोटेशियम (Potassium) को किस प्रकार सूक्ष्मजीवों की मदद से पानी में घुलित रूप में परिवर्तित कर पौधे को उपलब्ध कराया जा सकता है। सूक्ष्म जीवों का प्रयोग पोटेशियम की घुलनशीलता बढ़ाने के लिए किया जाना कोई नया कार्य नहीं है।
विभिन्न प्रकार के पौधे अपनी जड़ों में कुछ खास किस्म के सूक्ष्मजीवों को स्थान और पोषण प्रदान करते हैं, और बदले में यह सूक्ष्मजीव पौधों की जड़ों के आसपास के खनिजों को घोल कर उन्हें आसान रूप में परिवर्तित कर पौधे को उपलब्ध करवाते हैं।
इन्हीं में से ज्यादा प्रभावशाली सूक्ष्मजीवों को चयनित कर उन्हें फसलों में पोटेशियम की उपलब्धता और अवशोषण बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
पोटाश (Potash) घोलक बैक्टीरिया, चट्टान यानी खनिज में उपस्थित पोटाश को घोलने की क्षमता रखते हैं, बशर्ते कॉर्बन और ऊर्जा स्त्रोत यानी ग्लूकोज उपलब्ध हो।
नीचे के चित्रों में आप देखेंगे कि पेट्री डिश में पोटेशियम मिनरल्स का सूक्ष्मजीवों के माध्यम से घुलित रूप में (solubilization) परिवर्तन किया गया है जो कि बैक्टीरिया की कॉलोनी के आसपास ज्यादा पारदर्शी गोल घेरे के रूप में देखा जा सकता है।

लेखक परिचय:

डॉ. पुष्पेन्द्र अवधिया (Ph.D. लाइफ साइंस, M.Sc. इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी)
विषय रूचि– सूक्ष्मजीव विज्ञान, कोशिका विज्ञान, जैव रसायन और प्रकृति अनुकूल टिकाऊ कृषि विधियां
कृषि में उन्नति के लिए सही विधियों की जानकारी उतनी ही जरुरी है जितना उन विधियों के पीछे के विज्ञान को समझने की है. ज्ञान-विज्ञान आधारित कृषि ही पर्यावरण में हो रहे बदलावों को सह पाने में सक्षम होती है और कम से कम खर्च में उच्च गुणवत्ता कि अधिकतम उत्पादकता दे सकती है. खेत का पर्यावरण सुधरेगा तो खेती लंबे समय तक चल पायेगी. आइये सब की भलाई के लिए विज्ञान और प्रकृति अनुकूलता की राह पर चलें.
किसान भाई कृषि सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु Whatsapp-7987051207 पर विवरण साझा कर सकते हैं.
जीवाणु कंपोस्ट (Microbial Compost)
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