प्याज में लगने वाली फंगस जनित बीमारियाँ:
अब तक ज्ञात जानकारी के अनुसार प्याज (Onion) की रोगकारक फंगस 22 से भी ज्यादा प्रकार की होती है। प्याज हर अवस्था में फंगस जनित बीमारियों का शिकार हो सकती है। फंगस प्याज के बीज बोने से ले कर बीज बनने तक की अवस्था में संक्रमित कर सकते हैं।
जिन क्षेत्रों मे प्याज की सघन खेती होती है और बार बार या अदल बदलकर एक ही खेत में प्याज-लहसुन बोया जाता है वहाँ रोगकारक फंगस अपना घर कर लेते हैं और अनुकूल परिस्थितियाँ आने पर गुणित हो कर बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं।

रोगकारक फंगस के स्त्रोत: फसल में रोगकारक फंगस कहाँ से आती है?
फसल में रोगकारक फंगस का प्रमुख स्त्रोत संक्रमित पौधे, संक्रमित कंद (कंदी), संक्रमित बीज, संक्रमित मिट्टी (ऐसे खेत जहां पिछली फसलों के अपशिष्ट पड़ें हों) आदि हैं। रोगकारक फंगस पास के संक्रमित खेतों से हवा, पानी, मजदूरों के कपड़ों, हाथों, जूतों और यहाँ तक कि ट्रैक्टर के पहियों में लगी मिट्टी के माध्यम से आते जाते हैं। मिट्टी में उपस्थित कीट जो पौधे को काटते, चूसते हैं वे भी इन रोगकारक फंगस को फैलाने का कार्य करते हैं।
खेतों में पड़ा पिछली फसलों का अपशिष्ट रोगकारक फंगस का प्रमुख स्त्रोत है। स्टोर में खराब हुआ प्याज/छांटन जो खुले में या जल स्त्रोतों में फेंक दिया जाता है उसमें से रोगकारक फंगस कीटों और सिंचाई के पानी के माध्यम से पुनः खेत में एंट्री पा लेते हैं।

आइए प्याज के विभिन्न रोग, रोगकारक फंगस के नाम और उनका अनुकूल तापमान जानें जिसपर वे एक्टिव हो कर फसल में रोग उत्पन्न कर सकते हैं।
क्र. | रोग का नाम | रोगकारक फंगस | रोगकारक का अनुकूल तापमान | अनुकूल आद्रता |
1 | डम्पिंग ऑफ | तीन प्रकार की प्रमुख फंगस: 1- फ्यूजेरियम स्पी. 2- राईजेक्टोनिया सोलेनी 3- पाईथियम स्पी. | सामान्य तापमान | लगातार गीली मिट्टी, ज्यादा कम्पैक्ट खेत |
2 | डाउनी मिल्ड्यू | परनोस्पोरा डिसट्रैक्टर | कम तापमान | बारिश/ज्यादा आद्रता |
3 | लीफ ब्लाइट | बोट्रीटिस स्क्वामोसा | 25 डिग्री के आसपास | नमी, आद्रता, गीली पत्तियां |
4 | बोट्रीटिस धब्बे | बोट्रीटिस किनेरिया | 21 डिग्री | गीली पत्तियां, नमी |
5 | काली डंडी रोग | स्टेमफिलियम बोट्रायोसम | 25-30 डिग्री | उच्च आद्रता |
6 | काली फंगस | ऐस्परजिलस नाइगर | खेत में 30 डिग्री से ज्यादा और स्टोर में 25 डिग्री | नमी का इकट्ठा होना |
7 | बेसल राट | फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम फ्यूजेरियम स्पी. | 27 डिग्री | |
8 | गुलाबी जड़ें | फोमा टेरिस्ट्रिस | 24-28 डिग्री | नमी की जरूरत नहीं |
9 | पर्पल ब्लोच | अल्टर्नेरिया पोरी | 24-28 डिग्री लंबे समय तक पत्ती का गीला रहना | गीली पत्ती |
10 | तना और बल्ब गलन | फायटोपथोरा निकोटिएनी | 30 डिग्री से ज्यादा | ज्यादा और लगातार गीली मिट्टी |
11 | पाउडरी मिल्ड्यू | लेवेलुला टौरिका | गरम मौसम | आद्रता |
12 | रस्ट | पकसीनिया एली | ठंडा-मध्यम तापमान | उच्च आद्रता |
13 | सदर्न ब्लाइट | स्कलेरोटीयम रॉलफसी | 25-30 डिग्री | गीली मिट्टी |
14 | स्मट | उरोसिस्टिस | 13-22 डिग्री | |
15 | स्मज | कॉलेटोट्राईकम स्पी. | 20-26 डिग्री | बारिश |
16 | ट्विस्टर/जलेबी | कॉलेटोट्राईकम ग्लोएओस्पोरॉइडिस | 23-30 डिग्री | उच्च आद्रता, ज्यादा नमी |
17 | स्टेमफ़ाईलियम लीफ ब्लाइट | स्टेमफ़ाईलियम वेसीकेरीयम | माध्यमिक तापमान | लगातार गीली पत्ती, बारिश |
18 | सफेद टिप | फायटोपथोरा पोरी | 15 डिग्री | उच्च आद्रता , बारिश |
19 | सफेद सड़न | स्कलेरोटीयम पोरी | ठंडक | |
20 | नेक राट | बोट्रीटिस एली | माध्यमिक तापमान | लगातार गीलापन |
महत्वपूर्ण बात यह है की जरूरी नहीं कि ये फंगस अकेले ही आक्रमण करें। कई बार अनेक फंगल संक्रमण एकसाथ होते हैं। साथ ही कीट प्रकोप, नीमाटोड का भी संक्रमण हो सकता है।
प्याज का बेसल राट

प्याज का जलेबी रोग

सफेद सड़न

कैसे सामना करें?
सबसे जरूरी बात है कि खेतों में पुरानी फसलों का अपशिष्ट न रहने दें। अगर अपशिष्ट है तो उसे मित्र सूक्ष्म जीवों के माध्यम से विघटित करें। मित्र सूक्ष्म जीव मिट्टी आदि में पहले से उपस्थित रोगकारक फंगस को रोकने और नष्ट करने का कार्य करते हैं।
पौधों को समुचित पोषण प्रदान करें। सूक्ष्म पोशक तत्वों की समुचित मात्रा का फसल के अनुरूप प्रयोग करें ताकि पौधे मजबूत बने रहें। अत्यधिक सिंचाई और लंबे सूखेपन से फसल को बचाएं। अनावश्यक नाइट्रोजन (यूरिया/अमोनियम सल्फेट/कैल्शियम नाइट्रेट आदि) का प्रयोग न करें। जमीन को एसिडिक होने से बचाएं। अच्छी तरह तैयार कम्पोस्ट का प्रयोग करें। खेत में पानी जमा न होने दें। सघन रोपई न करें।
अगर बीमारी या चुकी है तो स्प्रिंकलर से सिंचाई न करें बल्कि ड्रिप या फ़्लड सिंचाई करें।
लगातार एक ही प्रकार के फफूँदनाशियों के प्रयोग से उपरोक्त फंगस में प्रतिरोध उत्पन्न हो सकता है जिससे वे फफूंदनाशी दवाएं आगे कारगर नहीं रह जातीं इसलिए फफूँदनाशियों का समुचित प्रयोग करें।
मित्र फंगस – ट्राइकोडर्मा

प्याज की नर्सरी की शुरुआती अवस्था


डॉ. पुष्पेन्द्र अवधिया (Ph.D. लाइफ साइंस, M.Sc. इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी)
विषय रूचि- सूक्ष्मजीव विज्ञान, कोशिका विज्ञान, जैव रसायन और प्रकृति अनुकूल टिकाऊ कृषि विधियां
कृषि में उन्नति के लिए सही विधियों की जानकारी उतनी ही जरुरी है जितना उन विधियों के पीछे के विज्ञान को समझने की है. ज्ञान-विज्ञान आधारित कृषि ही पर्यावरण में हो रहे बदलावों को सह पाने में सक्षम होती है और कम से कम खर्च में उच्च गुणवत्ता कि अधिकतम उत्पादकता दे सकती है. खेत का पर्यावरण सुधरेगा तो खेती लंबे समय तक चल पायेगी. आइये सब की भलाई के लिए विज्ञान और प्रकृति अनुकूलता की राह पर चलें.
किसान भाई कृषि सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु Whatsapp-9926622048 पर विवरण साझा कर सकते हैं.