मधुमक्खियों को कीट नाशियों से कैसे बचाएं? कौन कौन से कीटनाशी मधुमक्खी के लिए बहुत जहरीले हैं? कौन से कीटनाशी इनके लिए कम जहरीले हैं? इनका ध्यान रखते हुए फसल को हानिकारक कीटों से बचाने के लिए कब स्प्रे करना चाहिए? आइए जानें।
मधुमक्खी पर कीटनाशकों का क्या प्रभाव होता है? क्या कीनाशकों के बढ़ते प्रयोग और मधुमक्खियों की कमी के बीच कोई संबंध है? आइए जानें कि मधुमक्खियों, लेसविंग जैसे कृषि मित्र कीटों को बचाने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
मधुमक्खियां भी कीट परिवार की सदस्य हैं।

मधुमक्खियां भी कीट परिवार की सदस्य हैं। जाहिर है कीट नाशकों का असर इनपर भी होगा। इन पर कम ज्यादा असर तो हरेक कीटनाशक का संभावित है, यहां तक कि मधुमक्खियों के लिए नीम तेल और एमामेक्टिन भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है।
पर वे कौन से कीटनाशक हैं जो मधुमक्खियों के लिए ज्यादा हानिकारक हैं और कौन से मध्यम दर्जे के नुकसानदेह रसायन हैं।
सबसे पहले यह जानना करते हैं कि मधुमक्खी किस किस तरीके से कीट नाशकों के संपर्क में आ सकती है।
पहला; स्प्रे के दौरान कीटनाशी से सीधा संपर्क
दूसरा; पराग और नेक्टर में उपस्थित कीटनाशी द्वारा
तीसरा; पानी में बहकर आए कीटनाशी द्वारा
मध्यमक्खी से कीटनाशी का सीधा संपर्क तब होता है जब मधुमक्खी छिड़काव किये जा रहे रसायन के संपर्क में आती है या फिर हवा के माध्यम से कीटनाशक उसके छत्ते पर पहुंचता है।
कांटेक्ट या संपर्क कीटनाशी इस प्रकार के नुकसान के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते हैं।
स्प्रे के बाद कीटनाशी कितने समय तक पौधे विषाक्त बनाये रखता है इसपर भी मधुमक्खी को होने वाला नुकसान निर्भर करता है।
जैसे पराग पर चिपका संपर्क कीटनाशी या नेक्टर में उपस्थित सिस्टेमिक कीटनाशी मधुमक्खी को नुकसान पंहुचा सकता है बल्कि पराग के माध्यम से छत्ते में उपस्थित अगली पीढ़ी तक के लिए जहरीला होता है।
अत्यधिक मात्रा में डाला गया कीटनाशी जमीन पर गिरकर या पौधों की जड़ों के माध्यम से सिंचाई के पानी मे होता हुआ आसपास इकट्ठे पानी को दूषित करता है। मधुमक्खियां खेतों के आसपास के ठहरे जल स्त्रोतों पर ही निर्भर होती हैं। ऐसा कीटनाशकों से दूषित पानी पी कर वे मर सकतीं हैं।
कम मात्रा में मिलने वाला जहर भी धीरे धीरे अपना असर दिखाता है और विभिन्न प्रकार के दुष्प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। जैसे न्यूरोटॉक्सिन कीटनाशकों द्वारा मधुमक्खी द्वारा भोजन ढूंढने की प्रक्रिया को बिगाड़ देना।
मधुमक्खी के लिए सबसे ज्यादा जहरीले कीटनाशक
फसल जब फूलों से भरी हो, मधुमक्खियों की एक्टिविटी हो तब इनका स्प्रे बिल्कुल न करें
- क्लोरोपायरीफॉस
- अल्फा सायपरमेथ्रिन
- कार्बोसल्फान
- थियामेथोक्साम
- इमिडाक्लोप्रिड
- एसीफेट
- डाईक्लोरोवास
- फॉसफ़ोमिडॉन
- कार्बोफुरान
- फॉसमेट
- मिथाइल पैराथिऑन
- परमेथ्रिन
- फेनवेलरेट
- एल्डिकार्ब
- बाईफेनथ्रिन
- फ़िप्रोनिल
- फेनप्रोप्रेथ्रिन
- क्लोथियानिडिन
- सायफ्लूथ्रिन
- एबामेक्टिन
मधुमक्खी के लिए माध्यमिक रूप से जहरीले कीटनाशक
मधुमक्खियों की एक्टिविटी होने पर भी देर शाम इनका स्प्रे किया जा सकता है।
- प्रोफ़ेनोफॉस
- थायोडिकार्ब
- ऑक्सी डेमेटोन मिथाइल
- डेमेटोन
- कार्बारिल
- फोसालोन
- बुप्रोफेजिन
- फ्लूबेंड़ीमाइड
- नीम तेल
- एजाडिरेक्टिन
- पेसिलोमईसिस
- पायरीप्रॉक्सीफेन
- एमामेक्टिन बेंजोएट
- स्पिनोट्राम
- स्पिनोसैड
- स्पीरोमेसीफेन
- स्पीरोटेट्रामेट
- बवेरिया बैसियाना
मधुमक्खी के लिए कम जहरीले कीटनाशक
मधुमक्खियों की एक्टिविटी होने पर भी दिन में इनका स्प्रे किया जा सकता है। आवश्यकता के अनुरूप इन कीटनाशकों को अन्य पर तरजीह दी जा सकती है
- अमित्राज
- नेसीलस
- बेसिलस थुरिन्जेन्सिस
- प्रोपारगईट
- इथिओन
- डिकोफोल
- फ्लूवैलीनेट
- क्लोरेनट्रालिनीप्रोल
- फेनपायरॉक्सीमेट
- फलोनिकामिड
- मेटरैजियम
- सल्फर
Ref: Stanford M., Florida Univ., UCIPM, California Univ.
मधुमक्खी को कीटनाशकों से बचाने के लिए क्या कदम उठाएं?
वैसे मधुमक्खी सुबह 8 से शाम 4 के आसपास एक्टिव रहती है।पर दोपहर 11 -12 बजे तक इसकी एक्टिविटी चरम पर होती है। मौसम और क्लाइमेट के अनुसार इसमें बदलाव होते हैं। पर अधिकांश इलाकों में दोपहर के वक्त ही इनकी एक्टिविटी सर्वाधिक होती है।
उपरोक्त तथ्य से स्पष्ट है कि मधुमक्खी को कीटनाशक के सीधे प्रभाव से बचाना है तो कीटनाशी का स्प्रे शाम के वक्त करना सबसे अच्छा उपाय है। वैसे सभी प्रकार के कीटनाशियों का स्प्रे शाम के वक्त करना अच्छा फैसला माना जायेगा।
कीटनाशी का चुनाव
कीटनाशी का चुनाव ऐसा होना चाहिए वह टारगेट पेस्ट यानी जिस नुकसानदायक कीट के लिए डाला जा रहा है उसे अधिकतम नुकसान पहुचाये और अन्य कीटों को कम से कम प्रभावित करे।
लंबे समय तक पौधे को विषाक्त बनाए रखने वाले कीटनाशकों से बचना चाहिए।
ऐसा तब संभव है जब फसल और जमीन ताकतवर होगी क्योंकि तभी यह संभव है की वह हानिकारक कीटों से अपने स्तर पर निबट ले और बाहरी कीटनाशकों पर निर्भरता सीमित की जा सके।
मजबूत फसल यानी कम कीटनाशी
फसल जितनी कामजोर होगी, उसपर कीटों बीमारियों का प्रकोप उतना ज्यादा होगा और फिर कीटनाशी भी ज्यादा डालने पड़ेंगे। इस प्रकार पर्यावरण और प्राकृतिक सिस्टम को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा।
यदि हम पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व, कम्पोस्ट और मित्र सूक्ष्मजीव आधारित खेती अपनाते हैं तो पौधे मजबूत बनते हैं और वे अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी चीजें स्वयं बनाते हैं। कई सालों से बैक्टर विधि पर काम करने यह अनुभव है कि यह विधि अपनाने से कीट प्रकोप आधे से भी कम रह जाता है। कीटनाशकों के स्प्रे कम लगते हैं और ज्यादा जहरीले कीटनाशकों के प्रयोग की नौबत नहीं आती। उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता में जो बढ़ोत्तरी होती है वह अलग।
तो मधुमक्खियों की सुरक्षा इसपर भी निर्भर है कि आपकी जमीन और फसल पोषण और माइक्रोबियल एक्टिविटी के अनुसार कितनी मजबूत है।
पेड़, फल फूल वाले पौधे और पानी
खेतों का एक कोना प्रकृति के नाम कर देना किसानों के लिए कोई बड़ी बात या नया काम नहीं। खेतों के एक कोने पर पीपल, बरगद, आम, महुआ, खिरनी, नीम, गोंदी आदि स्थानीय पेड़ों को जगह देना जो गर्मियों मे पशु पक्षियों और कीटों को आश्रय और भोजन देते हैं। नींबू, संतरा, अमरूद, चीकू आदि पेड़ भी इन सबके लिए लाभकारी हैं। इस झुरमुट के आसपास पानी की व्यवस्था, खास तौर पर गर्मियों के दौरान मधुमक्खियों सहित अन्य जीवों के लिये लाभकारी होगी जो किसी न किसी प्रकार पर्यावरण संतुलन में अपना योगदान देते हैं।