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लसन की प्रकृति अनुकूल कृषि (ऊटी /देसी)

लहसुन या लसन की खेती मुनाफे की खेती समझी जाती है। अगर उत्पाद की गुणवत्ता अच्छी तो भाव भी ऊंचे मिलते हैं। विगत वर्षों में अनेकों कारणों से लहसुन की फसल में बीमारियां बढ़ती जा रही हैं वहीं उत्पादकता घटती जा रही है। हमने बैक्टर विधि से लहसुन की खेती में अच्छी गुणवत्ता की भरपूर पैदावार प्राप्त करने में सफलता पाई है। अलग अलग एरिया और अलग अलग मिट्टी में ऊटी, जी2, ओमलेटा, तुलसी, गोंडल आदि किस्मों में काम करते हुए उत्पादन 3.5 से 4 टन प्रति बीघा हासिल करने में सफल रहे। आइए विस्तार से जानें कैसे आप भी लहसुन का बढ़िया उत्पादन ले सकते हैं।

लसन की खेती में जरूरी सावधानियाँ

अगर ऊटी की लसन लगा रहे हैं तो कम से कम 20-25 दिन पहले ऊटी से आए हुए बीज को ही प्रयोग करें। तुरंत लाए हुए बीज को धूप दिखा कर जालियों पर रखें और पंखे चलाएं ताकि उसकी बाहरी नमी अच्छी तरह से सूख जाए। कलियाँ न करें जब तक बुवाई नजदीक न या जाए। अपने आप कलियाँ चटखने दें। अगर प्याज से गोदाम में लसन रख रहें हों तो कीड़ों का ध्यान रखें और उचित संपर्क कीटनाशी का प्रयोग कर उड़ने वाले कीड़ों को नियंत्रित करें ताकि वे बीज को नुकसान न पहुंचा पायें और पुरानी प्याज से लसन में फंगस/बैक्टीरिया जनित बीमारियों का फैलाव रुके।

बीजोपचार

लसन की कलियों मित्र सूक्ष्मजीवों से उपचारित करें। मित्र सूक्ष्मजीवों से उपचारित करने का प्रमुख फायदा है कि जड़ें तेजी से विकसित होती हैं। जड़ों का तेज विकास जमीन से पोषक तत्वों के अवशोषण को सुगम बनाता है। पौधा जल्दी मजबूत बनता है। अच्छी जड़ों वाले मजबूत पौधे बीमारियों और व्याधियों का बेहतर तरीके से सामना कर पाते हैं।

भूमि उपचार

बुवाई के ठीक बाद खेत में पानी देना चाहिए। इसी पानी के साथ मित्र सूक्ष्मजीव जमीन मे दिए जाने चाहिए ताकि जमीन मे उपस्थित पुरानी फसल के बचे कुचे अवशेष यानी पत्तियों/डंठलों/जड़ों को विघटित कर उससे संक्रमण रोक जा सके। इसी कचरे रूपी जीवंश का भोजन की तरह प्रयोग कर मित्र सूक्ष्मजीव अपनी संख्या बढ़ा लेते हैं और फसल को भरपूर सपोर्ट देते हैं।

जरूरी पोषक तत्व

लगभग सभी फसलों को निम्न पोषक तत्वों की जरूरत होती है:
कार्बन Carbon (C)
हाईड्रोजन Hydrogen (H)
ऑक्सीजन Oxygen (O)
नाइट्रोजन Nitrogen (N)
फास्फोरस Phosphorus (P)
पोटाश Potassium (K)
मैग्नीशियम Magnesium (Mg)
सल्फर Sulphur (S)
जिंक Zinc (Zn)
आयरन यानी लौह तत्व Iron/ Ferrous (Fe)
मैंगनीज Manganese (Mn)
कैल्शियम Calcium (Ca)
बोरॉन Boron (B)
कापर Cupper (Cu)
सोडियम Sodium (Na)
मॉलिब्डेनम Molybdanum (Mo)
(इसके अलावा अतिअल्प मात्रा में कोबाल्ट Cobalt (Co), निकेल Nickel (Ni) आदि )

इनमें से कार्बन पौधे हवा से लेते हैं। हवा में कार्बन; गैसीय कार्बन अर्थात कार्बन डाई आक्साइड रूप में होता है जिसे पौधे स्टोमेट से पत्ती के भीतर खींच लेते हैं। ऑक्सीजन और हाईड्रोजन पौधे पानी से प्राप्त करते हैं। इन तीनों के मिलन से पौधों में भोजन का निर्माण होता है, जिसे हम प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कहते हैं। ध्यान से देखें तो पाएंगे कि ये तीनों तत्व मुफ़्त ही प्रकृति मे उपलब्ध हैं। सूर्य के प्रकाश के बिना प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संभव नहीं।

बुवाई के पहले कम्पोस्ट और कॉम्प्लेक्स फर्टिलाईजर का इस्तेमाल करें। बाकी नूट्रिशन 20-30 दिन की अवस्था में डालें जब जड़ें प्रापर फैल चुकी हों और पौधा नूट्रिशन के लिए तैयार हो। पोषण देने भर से पौधे को उपलब्ध नहीं हो जाता। जमीन और वातावरण के की कारक पोषक तत्वों की उपलब्धता प्रभावित करते हैं।

चूंकि पोषक तत्व आपस में रासायनिक क्रिया कर के अघुलनशील रूप बना लेते हैं इस लिए पोषण की उपलब्धता और उन्हे चक्र में बनाए रखने के लिए मित्र सूक्ष्मजीव आवश्यक होते हैं।

वृहद पोषक तत्वों में से फास्फोरस; कैल्शियम के प्रति अति संवेदनशील होता है। जमीन में और पनि में कैल्शियम आयनों के रूप में उपस्थित होता है और घुलनशील फास्फोरस से जुड़कर कैल्शियम फास्फेट बना लेता है जो अघुलनशील होता है और पौधे इसे ग्रहण नहीं कर पाते। BacterPhos के मित्र सूक्ष्मजीव इसे पुनः घुलित रूप में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध करवाते हैं।


दूसरा वृहद पोषक पोटैशियम, सिलिकेट्स के रूप में बंधित होता है। इसे घुलनशील बनाने के लिए K-bacter मित्र सूक्ष्मजीव बहुत कारगर है। पोटाश की पर्याप्त सप्लाइ से पौधों की रोग रोधी क्षमता, पानी का मैनेजमेंट तो सुधारता ही है साथ ही कृषि उत्पाद की गुणवत्ता और वजन में इम्प्रूवमेन्ट होता है। पूरी फसल के दौरान दो बार K-bacter का प्रयोग बढ़िया परिणाम देता है।

स्वस्थ और कार्यक्षम पौधों के लिए जिंक भी आवश्यक तत्व है जो फास्फोरस, कैल्शियम और सिलिकेट्स के साथ आबंधित हो कर अघुलनशील हो जाता है। Zincobacter के मित्र सूक्ष्मजीव इसे घुलनशील रूप में बदलकर पौधों को उपलब्ध करवाता है। जिंक की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता पौधों को मजबूत और संक्रमण के प्रति प्रतिरोधी बनाती है।

इसी प्रकार सल्फर भी बिना मित्र सूक्ष्मजीवों की क्रिया के पौधों के लिए उपलब्ध नहीं होता भले जमीन में कितनी भी मात्रा में डाला गया हो
फेरस, कॅल्शियम, मैग्नीशियम आदि भी आपस में क्रिया करके अघुलनशील रूप बना लेते हैं जिसे मित्र सूक्ष्मजीव पुनः घुलनशील करके चक्र में ले आते हैं।