अश्वगंधा (Ashwagandha): परिचय
अश्वगंधा (Ashwagandha/Indian Ginseng ) एक औषधीय पौधा है। इसे पुनरयौवन देने वाली औषधि माना जाता है। अश्वगंधा का वैज्ञानिक नाम विथानिया सोमनीफेरा है। प्राचीन भारतीय पद्धतियों, आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा में इस पौधे की पत्तियों, बीजों और जड़ों का उपयोग शामिल किया गया है। इसके 200 से ज्यादा योग उल्लिखित हैं। अश्वगंधा को जोड़ों के दर्द, सूजन, आंतरिक inflammation, तंत्रिका तंत्र के रोगों आदि के उपचार के लिए उपयोगी माना जाता है।
अश्वगंधा (Ashwagandha), 3000 सदस्यों के भरे पूरे सोलोनेसी (Solanaceae) परिवार का हिस्सा है। आलू, टमाटर, बैंगन, मिर्च और तंबाकू भी इसी परिवार के सदस्य हैं।
यह झाड़ीनुमा पौधा प्राकृतिक रूप से शुष्क और सबट्रॉपिकल क्लाइमेट में उगने वाला सूखा प्रतिरोधी पौधा है। इसे 20-38 डिग्री का तापमान पसंद है। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, गुजरात प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। मध्य प्रदेश में 5000 हेक्टेयर से भी ज्यादा जमीन पर अश्वगंधा (Ashwagandha) की खेती की जाती है। यह 150 -180 दिन की फसल है।

अश्वगंधा (Ashwagandha) की खेती का सीजन
यह रबी और खरीफ दोनों सीजन में उगाया जाता है। अश्वगंधा की खेती के लिए काली मिट्टी उपयुक्त होती है परंतु इसे pH 7.5 -8.0 वाली रेतीली मिट्टी या हल्की लाल मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। पौधों पर मिट्टी के pH का क्या प्रभाव होता है यह जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
विशेष किस्म :मध्य प्रदेश के जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित हाई ऐल्कलॉइड की किस्म जवाहर मे 0.3% तक Withanolides हो सकते हैं। यह किस्म सघन खेती के लिए उपयुक्त है।
अश्वगंधा (Ashwagandha) के अलकेलॉइड्स
अश्वगंधा (Ashwagandha) की पत्तियों, फलों और जड़ों मे 12 प्रकार के अलकलोइड्स और 40 प्रकार के Withanolides पाए जाते हैं, जिनपर विभिन्न रिसर्च की जा रहीं हैं। Withanolides विशेष प्रकार के स्टेरॉइडल लेक्टोन टेरपेनोइड्स होते हैं। अश्वगंधा की भारतीय किस्मों मे अलकलोइड कंटेन्ट 0.13 % से 0.31% तक हो सकता है। वैश्विक रूप से यह 4.3% तक रिकार्ड किया गया है।
अश्वगंधा (Ashwagandha) की खेती : नर्सरी या छींटवा?
नर्सरी विधि से खेती करने पर अच्छी क्वालिटी की जड़ें प्राप्त होती हैं जो एक्सपोर्ट (Export) के लिए विदेशों में भेजी जाती है। नर्सरी की शुरुआत जून जुलाई मे की जाती है और 35 दिन की अवस्था में ट्रांसप्लांट किया जाता है। लगभग 5 किलोग्राम बीज एक हेक्टेर के लिए उपयुक्त होता है। वैसे बीज की मात्र चाही गई जड़ों की मोटाई और जमीन की उर्वरता के हिसाब से बदल सकती है। इसे सीधे खेत मे भी छींटवा विधि से बोया जा सकता है। अगर छींटवा विधि से बुवाई कर रहे हैं तो 10-12 किलो बीज प्रति हेक्टेयर मे बोया जाता है.

अश्वगंधा (Ashwagandha) की खेती: ऑर्गैनिक/जैविक तरीके
ऑर्गैनिक विधि से उगाए जा रहे अश्वगंधा (Ashwagandha) का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए गोबर खाद/काम्पोस्ट (Compost) अपरिहार्य है। 2-3 ट्राली तक अच्छी तरह पकाया हुआ गोबर खाद प्रति हेक्टेयर डालना अनुशंशित है। compost के विषय में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें। नाइट्रोजन (Nitrogen ) की पूर्ति के लिए एजोटोबैक्टर (Azotobacter) का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह मित्र सूक्ष्म जीव वायुमंडल मे उपस्थित नाइट्रोजन को पौधे के उपयोग लायक अमोनियम रूप में परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। एजोटोबैक्टर (Azotobacter) के विषय में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं। फॉसफोरस (Phosphorus) की पूर्ति के लिए रॉक फॉस्फेट (Rock Phosphate )और फॉस्फेट घोलक सूक्ष्म जीवों का इस्तेमाल किया जा सकता है। रॉक फॉस्फेट के विषय में अधिक जानकारी के लिए यहाँ पर क्लिक करें।
सीड्लिंग अवस्था में फफूंद जनित सड़न और ब्लाइट आदि रोगों के कारण कई बार ज्यादा नुकसान उठाना पास सकता है। इनसे बचने के लिए या ऑर्गैनिक विधि से उगाए जा रहे अश्वगंधा (Ashwagandha) हेतु बीजोपचार ट्राइकोडर्मा से किया जाना चाहिए। यह बीज जनित फफूंद रोगों से बचाव में सहायक होता है। अधिक खतरे वाली जमीनों मे भूमि शोधन भी किया जा सकता है। ऐसी जमीनों में बिना सडा गोबर खाद या फसल अपशिष्ट काफी नुकसान का कारण बन सकता है।
ऑर्गैनिक विधि से उगाए जा रहे अश्वगंधा (Ashwagandha) में किसी भी तरह के रासायनिक कीट नाशी, फफूंद नाशी और चरामार दवाई के प्रयोग से बचना चाहिय।
अश्वगंधा (Ashwagandha) और अमरबेल
उत्पादन के दौरान ध्यान न देने पर कई बार अमरबेल का प्रकोप फसल पर हो जाता है जिसके बारीक बीज अश्वगंधा (Ashwagandha) के बीजों के साथ मिश्रित हो जाते हैं और गली बार बुवाई करने पर सीड्लिंग अवस्था मे ही फसल हो ग्रसित कर लेते हैं।

अश्वगंधा (Ashwagandha): हार्वेस्टिंग और क्वालिटी
फसल निकालते व्यक्त जमीन में पर्याप्त नमीं होनी चाहिए ताकि मूसला जड़ और उससे जुड़ी सहायक जड़ें न टूटें। इन्हीं मे अश्वगंधा (Ashwagandha) की गुणवत्ता निर्धारित होती है। निकालने के बाद इसके तने को जड़ वाले हिस्से से अलग किया जाता है। जड़ों को धो कर सुखाने के बाद इसकी ग्रेडिंग की जानी चाहिए ताकि अच्छा भाव मिल सके। 7 सेन्टीमीटेर तक की लंबाई की जड़ों को A ग्रेड का माना जाता है। इनकी मोटाई 1-1.5 सेन्टीमीटेर तक होता है। जड़ों की सफाई और रंग भी खास मायने रखता है। साफ, सफेद, चमकदार और ठोस जड़ें एक्सपोर्ट के लिए अच्छी मानी जातीं हैं।
हेल्थ सप्लीमेंट्स में अश्वगंधा (Ashwagandha) की बढ़ती हुई वैश्विक डिमांड ने इसे किसानों के लिए बेहतर विकल्प बना दिया है। आशा है यह जानकारी अश्वगंधा की खेती में इंटेरेस्टेड लोगों के लिए लाभकारी साबित होगी। अधिक जानकारी के लिए 7987051207 पर संपर्क कर सकते हैं।