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Agriculture में एज़ोटोबैक्टर (Azotobacter)

एज़ोटोबैक्टर (Azotobacter):

अगर एजोटोबैक्टर को खेती के लिए नाइट्रोजन की प्राकृतिक फैक्ट्री कहा जाये तो अतिशयोक्ति न होगी.

खेती (Agriculture) के लिए नाइट्रोजन सबसे जरूरी तत्व है। इसकी पूर्ति के लिए अधिकांश किसान यूरिया पर निर्भर रहते हैं। हर साल यूरिया की शॉर्टेज होती है क्योंकि हम यूरिया के लिए विदेशों पर निर्भर हैं। अत्यधिक उर्जा की आवशयकता के कारण यूरिया की निर्माण लागत भारत में काफी ज्यादा है।

आइये खेती (Agriculture) में नाइट्रोजन की प्राकृतिक फैक्ट्री यानी एजोटोबैक्टर जीवाणु के विषय में जानें। और यह भी कि एजोटोबैक्टर औऱ किस किस तरीके से खेती के लिए लाभदायक है।

नाइट्रोजन की कमी से पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है. पौधे ठीक से अपना भोजन नहीं बना पाते है और अंततः पैदावार में भारी गिरावट आती है. फसल की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है. यही कारण है कि लगभग हर किसान खेती में यूरिया के महत्व को जानता है. यूरिया (NH2-CO-NH2 या N2H4CO) पौधों को नाइट्रोजन उपलब्ध करवाने वाला प्रमुख फ़र्टिलाइज़र है.

हमारी पृथ्वी के वायुमंडल में 78% गैस, नाइट्रोजन गैस (N2) है. N2 (आण्विक रूप) में नाइट्रोजन रासायनिक रूप से अक्रियाशील होती है और पौधे और जंतु इसका इस्तेमाल नहीं कर पाते. विश्व में सिर्फ कुछ सूक्ष्म जीव ही इस आण्विक नाइट्रोजन को रासायनिक रूप में बदल कर प्रयोग कर सकते हैं. Azotobacter उसी नाइट्रोजन स्थिरीकारक सूक्ष्मजीव समुदाय से आता है. इसी समूह में राइजोबियम की प्रजातियाँ भी हैं जो सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकारक हैं. सहजीवी प्रजातियाँ पौधों में बैक्टीरियल ग्रन्थि (रूट नोड्यूल्स) का निर्माण कर नाइट्रोजन स्थरीकरण करतीं हैं.

ग्रन्थि बनाने और नहीं बनाने के बीच प्रमुख अंतर उस सूक्ष्म जीव कि ऑक्सीजन के प्रति सहन शीलता का है. नाइट्रोजन स्थिकरण के लिए आवश्यक एंजाइम नाइट्रोजिनेज कहलाता है. यह एंजाइम ऑक्सीजन के प्रति बहुत संवेदनशील है और ऑक्सीजन कि उपस्थिति में अक्रियाशील हो जाता है. इससे बचने के लिए सहजीवी प्रजातियाँ पौधों में रूट नोड्यूल्स का निर्माण करती हैं. राइजोबियम बैक्टीरिया के साथ रूट नोड्यूल्स के निर्माण की क्षमता प्रमुख रूप से सिर्फ दलहनी फसलों में होती है.

Azotobacter एक मुक्त जीवी नाइट्रोजन स्थिरीकारक सूक्ष्मजीव है. यह पौधों कि जड़ों के पास रहता है परन्तु ग्रन्थि नहीं बनाता. ऑक्सीजन के दुष्प्रभाव से बचने के लिए एज़ोटोबैक्टर उच्च उपापचय दर का इस्तेमाल करता है अर्थात ऑक्सीजन, नाइट्रोजिनेज को प्रभावित करे उसके पहले ही ऑक्सीजन का उपभोग कर लिया जाता है.

एज़ोटोबैक्टर, नाइट्रोजन फिक्सेशन से अमोनियम आयनों का निर्माण करता है. नाइट्रोजन फिक्सेशन के लिए एज़ोटोबैक्टर को ग्लूकोज की आवश्यकता होती है जिसे पौधे कि जड़ें इसे उपलब्ध करवाती हैं और बदले में अमोनियम आयन प्राप्त करती हैं. इस अमोनियम आयन से पौधे प्रोटीन, विभिन्न एंजाइम, क्लोरोफिल के हिस्से, न्यूक्लिक एसिड, व पौधों की कोशिका के अन्य हिस्सों का निर्माण करते हैं. आप खेती (Agriculture) में नाइट्रोजन के महत्व का अंदाजा इस तथ्य से लगा सकते हैं कि दलहन फसलों में बीजों का मुख्य हिस्सा प्रोटीन ही होता है. सामान्यतः नाइट्रोजन कोशिका के शुष्क भार का 4% हिस्सा बनाती है .

Azotobacter पौधे से कार्बोहायड्रेट प्राप्त करता है , बदले में उसे नाइट्रोजन से अमोनियम आयन देता है.

एक अनुमान से अनुसार खेती में प्रयोग होने वाली नाइट्रोजन का आधे से अधिक हिस्सा (65%) सूक्ष्मजीवों से प्राप्त होता है.

Azotobacter कई प्रकार के एमिनो एसिड्स, पौधों के वृद्धिनियंत्रकों और विटामिन्स का निर्माण करने में सक्षम होता है. इन्डोल एसिटिक एसिड यानी IAA, इसमें से प्रमुख वृद्धिनियंत्रक है जिसके प्रभाव से, बीजों के अंकुरण की दर, जड़ों कि लम्बाई और बारीक जड़ों की संख्या बढती है. इस कारण पोषक तत्वों का अवशोषण बढ़ता है. IAA के प्रभाव से फूल और फल आने की प्रक्रिया भी सकारात्मक रूप से प्रभावित होता है.

एज़ोटोबैक्टर जीवाणु में कई प्रकार के रासायनिक पेस्टीसाइड को नष्ट करने कि भी क्षमता होती है.

खेती (Agriculture) भूमि में मिलने वाली एज़ोटोबैक्टर की प्रमुख प्रजातियाँ एज़ोटोबैक्टर क्रूकोकम Azotobacter Chroococcum और एज़ोटोबैक्टर विनेलेंडी Azotobacter Vinelandii हैं.

ऊपर वर्णित एज़ोटोबैक्टर की दोनों प्रजातियाँ कई प्रकार के विटामिन बनाने में सक्षम होती हैं. इन विटामिन्स में प्रमुख रूप से B विटामिन्स होते हैं. इन विटामिन्स में नियासिन, पेंटोथेनिक एसिड, रिबोफ्लेविन और बायोटिन प्रमुख हैं.

इनके अतितिक्त एज़ोटोबैक्टर पोली हाईड्रोक्सीब्यूटाईरेट यानी PHB और अल्गिनेट का निर्माण भी करते हैं. ये कंपाउंड प्रकृति जल अवशोषक (जैसे केमिकल हाईड्रोजेल) का कार्य करते हैं.  


यह पाया गया है कि एज़ोटोबैक्टर कई प्रकार के रोगकारक फंगस के नियंत्रण के लिए भी प्रभावी हैं. एस्परजिलस, फुजेरियम, करवुलेरिया, अल्टरनेरिया, और हेल्मिन्थोस्पोरियम इनमे से प्रमुख हैं.

एज़ोटोबैक्टर की कुछ प्रजातियों में , अघुलनशील फॉस्फेट को घुलित रूप में परिवर्तित करने की क्षमता रखता है.

एज़ोटोबैक्टर (Azotobacter) कि भूमि में उपस्थिति और संख्या कई भौतिक-रासायनिक कारकों पर निर्भर करती है. जैसे जमीन का pH, आर्गेनिक मैटर यानी जीवांश, भूमि की गहराई, फोस्फोरस और पोटाश की मात्रा और अन्य सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति आदि कारक एज़ोटोबैक्टर की उपस्थिति और कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं. अम्लीय pH एज़ोटोबैक्टर कि संख्या को विपरीत रूप से प्रभावित करता है.

मिट्टी का pH मान 6 से कम होने पर एज़ोटोबैक्टर कि संख्या तेजी से कम होती है. हालांकि एज़ोटोबैक्टर क्षारीय pH जे प्रति ज्यादा सहनशील है. यह 9 pH तक आसानी से गुणन करता पाया गया है. मिट्टी का pH 7 से 7.5 के बीच होने पर एज़ोटोबैक्टर कि कार्य क्षमता के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होता है. इस pH पर प्रति ग्राम मिट्टी 100 एज़ोटोबैक्टर पाए जा सकते हैं बशर्ते अन्य फैक्टर उनके अनुकूल हों. मिट्टी का pH मान 7 या उससे ज्यादा होने पर आयरन की घुलनशीलता और उपलब्धता प्रभावित होती है.

आयरन एज़ोटोबैक्टर के नाइट्रोजिनेज एंजाइम का प्रमुख अवयव है. इस pH पर आयरन प्राप्त करने के लिए एज़ोटोबैक्टर विशेष प्रकार के कंपाउंड जिन्हें सिडरोफोर कहा जता है, का निर्माण करते हैं.   

जमीन में हवा की उपस्थिति का एज़ोटोबैक्टर कि संख्या पर प्रभाव पड़ता है. भूमि की गहराई बढ़ने पर एज़ोटोबैक्टर कि संख्या कम होती जाती है. काली मिट्टी में हवा का प्रवेश ज्यादा मुश्किल होता है इस कारण गहरी काली मिट्टी में एज़ोटोबैक्टर कि संख्या बहुत कम होती है.  

ऊपरी सतह को देखें तो, लाल मिट्टी कि जगह, काली मिट्टी में एज़ोटोबैक्टर कि सँख्या ज्यादा मिलती है, अर्थात मिट्टी के प्रकार का भी एज़ोटोबैक्टर की संख्या पर प्रभाव पड़ता है.
एज़ोटोबैक्टर उच्च तापमान और विपरीत परिस्थितियों पर सिस्ट नामक संरचनाओं का निर्माण करता है, जिसके माध्यम से यह उच्च तापमान (45-48ºC) पर भी जीवित रह सकता है.

इन सब तथ्यों से यह स्पष्ट है कि azotobacter अनेकों प्रकार से खेती (Agriculture) के लिए लाभकारी सूक्ष्म जीव है. गैर दलहनी फसलों में इसका प्रयोग जरूर किया जाना चाहिए. उत्पादकता बढ़ने के साथ साथ जमीन भी सुधरेगी और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचेगा.

लेखक परिचय:

डॉ. पुष्पेन्द्र अवधिया (Ph.D. लाइफ साइंस, M.Sc. इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी)

विषय रूचिसूक्ष्मजीव विज्ञान, कोशिका विज्ञान, जैव रसायन और प्रकृति अनुकूल टिकाऊ कृषि विधियां

कृषि में उन्नति के लिए सही विधियों की जानकारी उतनी ही जरुरी है जितना उन विधियों के पीछे के विज्ञान को समझने की है. ज्ञान-विज्ञान आधारित कृषि ही पर्यावरण में हो रहे बदलावों को सह पाने में सक्षम होती है और कम से कम खर्च में उच्च गुणवत्ता कि अधिकतम उत्पादकता दे सकती है. खेत का पर्यावरण सुधरेगा तो खेती लंबे समय तक चल पायेगी. आइये विज्ञान प्रकृति अनुकूलता की राह पर  चलें.

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